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ऊर्जा की बढती आवश्यकताओं के बीच जरूरी है की भारत अपनी ऊर्जा उत्पादन क्षमता को बढाए दुर्भाग्य से भारत अभी तक ऊर्जा के पुराने श्रोतों पर ही निर्भर है और सर्वाधिक उत्पादन जल विद्युत के माध्यम से ही करता है इसके अलावा थर्मल पावर (कोयला आधारित विद्युत् उत्पादन ) तथा कुछ हद तक सौर उर्जा के माध्यम से करता है जिसमें सौर उर्जा उत्पादन महंगा होने के कारण प्रभावी नहीं हो पा रहा है जब की अन्य विकसित देश उर्जा के अन्य वैकल्पिक श्रोत यथा परमाणु उर्जा का भारी मात्र में उत्पादन तथा उपयोग कर रहे है भविष्य की आवश्यकताओं को भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री श्री जवाहरलाल नेहरु जी ने उस समय ही पहचान लिया था और भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर की नीव रख दी थी परन्तु भारत में युरेनियम का भण्डार न होने और विकसित देशो के साजिश पूर्ण भारत को युरेनियम न देने के कारण इस दिशा में भारत पिछड़ा रहा है और मांग के अनुरूप या अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के अनुरूप उर्जा उत्पादन नहीं कर पाता ऐसी दशा में आस्ट्रेलिया से युरेनियम सप्लाई पर प्रधानमन्त्री मोदी जी का समझौता वास्तव में मील का पत्थर साबित होगा परन्तु सरकार को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए विदेशों के सहारे रहने के बजाए हमें स्वयं अपने साधन विकसित करने होंगे भारत थोरियम का विश्व में सबसे बड़ा भण्डार है और थोरियम को भविष्य का सबसे बड़ा उर्जा श्रोत माना जाता है किन्तु इस दिशा में यूरोपीय और अन्य विकसित देश सिर्फ इसलिए काम नहीं कर रहे ताकि भारत जैसे देशों की निर्भरता उनपर बनी रहे और युरेनियम के लिए भारत जैसे देश उनके आगे नाक रगड़ते रहें और उनकी श्रेष्ठता बनी रहे ऐसी दशा में आवश्यक है की भारत स्वयं थोरियम रिएक्टर बनाने की दिशा में शीघ्रता से काम करे और अपनी उर्जा सम्बन्धी आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर हो जाए बल्कि दूसरो की आवश्यकताओ की भी पूर्ती करे
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